मंगलवार, 19 जुलाई 2011

10 reason why i join journalism


10 reason why i join journalism
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01- I Hate To sleeping
02- I can Not live Without Tension
03- I Have Enjoyed My Life In Childhood
04- I Want Disturb My Family Life
05- I Believe In Geeta "Kam kiye Jao Fal KI Iccha Mat Karo
06- I Do not Want To Spend time With Family
07- I Want To Take Revenge From Myself
07- I Desperately Need Break Up From My Dearest And Nearest
08- I Want Social Boycott
09- I Love To Work On Holiday's
10- I Want To spend My Life With Money Crises

रविवार, 17 जुलाई 2011

ॐ मृत्युंजयाय रुद्राय नीलकण्ठाय शम्भवे । अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नम: ॐ॥


श्रावण मासमें आशुतोष भगवान्‌ शंकरकी पूजाका विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न कर सकें उन्हें सोमवारको शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये और व्रत रखना चाहिये। सोमवार भगवान्‌ शंकरका प्रिय दिन है, अत: सोमवारको शिवाराधन करना चाहिये।श्रावणमें पार्थिव शिवपूजाका विशेष महत्व है। अत: प्रतिदिन अथवा प्रति सोमवार तथा प्रदोषको शिवपूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये।

सोमवार के व्रत के दिन प्रातःकाल ही स्नान ध्यान के उपरांत मंदिर देवालय या घर पर श्री गणेश जी की पूजा के साथ शिव-पार्वती और नंदी की पूजा की जाती है। इस दिन प्रसाद के रूप में जल , दूध , दही, शहद , घी, चीनी, जने‌ऊ, चंदन, रोली, बेल पत्र, भांग, धतूरा, धूप, दीप और दक्षिणा के साथ ही नंदी के लि‌ए चारा या आटे की पिन्नी बनाकर भगवान पशुपतिनाथ का पूजन किया जाता है। रात्रिकाल में घी और कपूर सहित गुगल, धूप की आरती करके शिव महिमा का गुणगान किया जाता है। लगभग श्रावण मास के सभी सोमवारों को यही प्रक्रिया अपना‌ई जाती है। इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ करानेका भी विधान है।

इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामूठ च़ढ़ा‌ई जाती है। वह क्रमशः इस प्रकार है :

प्रथम सोमवार को- कच्चे चावल एक मुट्ठी, दूसरे सोमवार को- सफेद तिल्ली एक मुट्ठी, तीसरे सोमवार को- ख़ड़े मूँग एक मुट्ठी, चौथे सोमवार को- जौ एक मुट्ठी और यदि पाँचवाँ सोमवार आ‌ए तो एक मुट्ठी सत्तू च़ढ़ाया जाता है।

शिव की पूजा में बिल्वपत्र अधिक महत्व रखता है। शिव द्वारा विषपान करने के कारण शिव के मस्तक पर जल की धारा से जलाभिषेक शिव भक्तों द्वारा किया जाता है। शिव भोलेनाथ ने गंगा को शिरोधार्य किया है।

एक कथा के अनुसार श्रीविष्णु पत्नी लक्ष्मी ने शंकर के प्रिय श्रावण माह में शिवलिंग पर प्रतिदिन 1001 सफेद कमल अर्पण करने का निश्चय किया। स्वर्ण तश्तरी में उन्होंने गिनती के कमल रखे, लेकिन मंदिर पहुँचने पर तीन कमल अपने आप कम हो जाते थे। सो मंदिर पहुँचकर उन्होंने उन कमलों पर जल छींटा, तब उसमें से एक पौधे का निर्माण हु‌आ। इस पर त्रिदल ऐसे हजारों पत्ते थे, जिन्हें तोड़कर लक्ष्मी शिवलिंग पर चढ़ाने लगीं, सो त्रिदल के कम होने का तो सवाल ही खत्म हो गया। और लक्ष्मी ने भक्ति के सामर्थ्य पर निर्माण कि‌ए बिल्वपत्र शिव को प्रिय हो ग‌ए। लक्ष्मी यानी धन-वैभव, जो कभी बासी नहीं होता। यही वजह है कि लक्ष्मी द्वारा पैदा किया गया बिल्वपत्र भी वैसा ही है। ताजा बिल्वपत्र न मिलने की दशा में शिव को अर्पित बिल्वपत्र पुनः चढ़ाया जा सकता है। बिल्वपत्र का वृक्ष प्रकृति का मनुष्य को दिया वरदान है।

सुहागन स्त्रियों को इस दिन व्रत रखने से अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है। विद्यार्थियों को सोमवार का व्रत रखने से और शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। बेरोजगार और अकर्मण्य जातकों को रोजगार तथा काम मिलने से मानप्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। सदगृहस्थ नौकरी पेशा या व्यापारी को श्रावण के सोमवार व्रत करने से धन धान्य और लक्ष्मी की वृद्धि होती है। ं भगवान श्री कृष्‍ण के वृन्‍दावन में भी सावन के महीने में बहारें छायीं रहेंगीं, जहॉं झूलों और रास लीला‌ओं का परम्‍परागत उत्‍सव रहेगा वहीं कृष्‍ण साधना और कृष्‍ण पूजा भी इन दिनों भारी संख्‍या में होगी पूरे महीने जहॉं शिव और कृष्‍ण की पूजा और साधना परम्‍परा चलेगी वहीं शिवालय और कृष्‍ण मन्दिर इन दिनों लोगों के मेलों से घिरे रहेंगे ।

आज भी उत्तर भारत में कांवड़ परम्परा का बोलबाला है। श्रद्धालु गंगाजल लाने के लि‌ए हरिद्वार , गढ़ गंगा और प्रयाग जैसे तीर्थो में जाकर जलाभिषेक करने हेतु कांवड़ लेकर आते हैं। यह सब साधन शिवजी की कृपा प्राप्त करने के लि‌ए है।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

पत्रकारिता की क़ीमत जान हो सकती है


पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है, जिसकी क़ीमत क्या है, अभी यह तय नहीं हुआ है. पत्रकारिता में जो लोग आते हैं उन्हें कम से कम यह ध्यान में रखकर आना चाहिए कि पत्रकारिता के पेशे की क़ीमत उनकी अपनी जान हो सकती है. मुंबई में मिड डे के पत्रकार जेडे की हत्या इस सत्य को एक बार फिर रेखांकित कर रही है. जेडे निर्भीकता से अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह कर रहे थे. बुनियादी तौर पर वह क्राइम रिपोर्टर थे और मुंबई के अंडरवर्ल्ड और मुंबई पुलिस के गठजोड़ तथा कौन स़फेदपोश ऐसे हैं, जो अपराध को प्रश्रय देते हैं, इसके बारे में वह लगातार लिखते रहते थे. उनके पास जानकारियां भी थीं और ज़्यादातर जानकारियां उनके पास अपने आप पहुंच रही थीं. पत्रकारिता में एक ऐसी स्थिति आती है जब आप खुद को स्थापित कर लेते हैं तो सारी खबरें अपने आप चलकर आ जाती हैं. जेडे इसी श्रेणी के पत्रकार थे. जेडे को श्रद्धांजलि देने के साथ हम पत्रकारिता के अपने अनुभव के बारे में बात करना चाहेंगे. हमारे बीच में ऐसे पत्रकारों की भरमार है, जो पत्रकारिता के बुनियादी पेशे की ज़िम्मेदारी का निर्वाह करने के बजाय पीआर जर्नलिज़्म यानी पब्लिक रिलेशन जर्नलिज़्म करने में ज़्यादा रुचि दिखाते हैं.

बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो प्रेस कटिंग के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार करते हैं. ऐसे बहुत कम लोग बचे हैं, जो फील्ड में जाते हैं और तथ्यों की जांच पड़ताल करते हैं और सत्य के साथ खड़े होते हैं. जेडे सत्य के साथ खड़े होने वाले पत्रकारों में से एक थे. इसलिए जेडे की शहादत हमें कई सीख देती है. पहली सीख यह देती है कि अगर सही पत्रकारिता करने वाले लोग एकजुट नहीं हुए तो अपराध, ख़ासकर स़फेदपोश लोगों के साए में चलने वाला अपराध उन्हें अभी और परेशान करेगा. जेडे की मौत यह भी सीख देती है कि सही पत्रकारिता करने वाले लोग अगर आसान ज़िंदगी जीना चाहेंगे तो यह उनके लिए संभव नहीं होगा. अगर हम इतिहास में देखें तो पहला नाम याद आता है गणेशशंकर विद्यार्थी का, जिनकी हत्या कानपुर में सत्य लिखने की वजह से हुई थी.

हिंदुस्तान में बहुत सारे पत्रकार स़िर्फ इसलिए मार दिए गए, क्योंकि उन्होंने अपने क़स्बे में चीनी की चोरबाज़ारी के बारे में रिपोर्टें लिखी थीं. बांदा में रामकृष्ण गुप्ता ऐसे पत्रकार थे, जिनकी इसी वजह से हत्या हुई, क्योंकि वह स्थानीय कालाबाज़ारियों के ख़िला़फ रिपोर्ट लिखते थे. वह दैनिक अख़बार के पत्रकार थे. फेहरिस्त लंबी है, हर प्रदेश में, हर ज़िले में भ्रष्टाचार और अपराध में लिप्त ऐसे संगठित गिरोह मिल जाएंगे, जिन्होंने सच लिखने वाले पत्रकारों पर हमले कराए.

आज भी हिंदुस्तान में हर जगह ईमानदारी से पत्रकारिता का धर्म निभाने वाले लोग हैं, लेकिन उन सब पर अपनी-अपनी तरह के खतरे मंडरा रहे हैं. कहीं किसी ज़िले में ठेकेदार, नेता और प्रशासन का गठजोड़ है, तो कहीं प्रदेश स्तर पर नेताओं और अपराधियों की साठगांठ है. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मा़फिया उन पत्रकारों पर नज़र रखे हुए है, जिनकी क़लम पैनी और सख्त है. पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है, जिसे समाज और आम लोगों ने मान्यता और इज़्ज़त दी है. संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि पत्रकारिता देश का चौथा खंभा है. इसे जन मान्यता मिली हुई है. न ही कहीं यह लिखा हुआ है और न ही ऐसा कोई नियम है कि पत्रकार किसी को कहीं भी रोक सकता है, लेकिन जनमानस ने समाज में पत्रकारों को यह हक़ दिया है कि वह कहीं भी किसी को रोककर सवाल पूछ सकता है. पत्रकार की यह समानता कोई दूसरा वर्ग या किसी दूसरे पेशे से जु़डा व्यक्ति नहीं कर सकता है. पत्रकार चाहे तो किसी भी ज़िलाधिकारी या मंत्री को रोककर, कह सकता है कि मैं अमुक अख़बार या पत्रिका का संवाददाता हूं, मुझे आपसे सवाल पूछना है. वह आदमी रुकेगा और वह कह सकता है कि मैं इस सवाल का जवाब नहीं दूंगा, लेकिन ऐसा नहीं है. हो सकता है कि वह बिना रुके और अनसुना करके भी चला जाए. यह ताक़त पत्रकारों को समाज ने दी है. समाज ने ही पत्रकारों को यह भी ताक़त दी है कि वे इस लोकतंत्र को चलाने वाले चौथे खंभे के रूप में जाने जाएं. जनता के किसी वर्ग को जब अपनी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता, या किसी नेता या प्रशासन के अधिकारी के सामने उसकी सुनवाई नहीं होती है तो उसके सामने स़िर्फ एक रास्ता बचता है कि वह किसी पत्रकार या अख़बार वालों के पास जाए और अपनी समस्या बताए.

आज भी लोगों की समस्याएं सुनने वाले पत्रकार हैं, जो उन्हें अपने अख़बार या अपनी पत्रिका में जगह देते हैं. इसलिए पत्रकारिता के पेशे का सम्मान जनता के मन में बहुत ज़्यादा है. लोग आपस में कहते भी हैं कि अगर हमारी कहीं भी सुनवाई नहीं होगी या अगर आप हमारी बात नहीं सुनेंगे तो हम अख़बार वालों के पास चले जाएंगे. अ़खबार में प्रकाशित जन समस्याओं पर सरकार और प्रशासन कार्यवाही भी करता है. आज भी अख़बारों में छपी रिपोर्ट पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेता है और अपनी तऱफ से नोटिस भी जारी करता है.

जेडे की मौत एक ऐसे पत्रकार की शहादत है, जो बड़ा क्राइम रिपोर्टर था, लेकिन उसके पास भी मोटरसाइकिल थी. वह चाहते तो कहीं से भी समझौता करके अपने लिए मुंबई में अच्छी सुविधाएं जुटा सकते थे, लेकिन जेडे ने ऐसा नहीं किया. जेडे की मौत भी मोटरसाइकिल पर चलते हुए उन लोगों की वजह से हुई, जो सही पत्रकारिता से बुरी तरह घबरा जाते हैं. इसमें कोई पुलिस अधिकारी शामिल है, पता नहीं. इसमें कोई अंडरवर्ल्ड शामिल है, पता नहीं. जेडे की हत्या की जांच कहीं पहुंच भी पाएगी, पता नहीं, क्योंकि इतने सारे पत्रकार जिन्हें दुख हुआ है, वे भी रोज़ी रोटी के काम में थोड़े दिनों में लग जाएंगे और जेडे का नाम स़िर्फ यादों में रह जाएगा. लगता है कि उनके हत्यारों की तलाश को लेकर पड़ने वाला दबाव भी थोड़े दिनों में कम हो जाएगा, लेकिन जेडे जैसी माैत और जेडे जैसी पत्रकारिता करने वाले लोग समाज में हमेशा इज़्ज़त की निगाहों से देखे जाएंगे. पत्रकारिता के पेशे की यही क़ीमत है.

डॉक्टर के बारे में कहा जाता है कि वह अपने मरीज़ों के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहेगा. बहुत सारे लोग नहीं रहते हैं, लेकिन यह सच नहीं है. सच वह डॉक्टर है जो 24 घंटे अपने मरीज़ों के लिए उपलब्ध रहता है. पुलिस के पेशे की क़ीमत है 24 घंटे क़ानून व्यवस्था के ऊपर नज़र बनाए रखे. फौज की क़ीमत है 24 घंटे अपने सीने पर गोली खाने के लिए तैयार रहे. फायर ब्रिगेड के पेशे की क़ीमत है 24 घंटे आग से जूझने के लिए तैयार रहे. वहां न बीमारी का बहाना चलता है और न ही तबीयत ख़राब होने का. पत्रकारिता के पेशे की क़ीमत है अपनी जान. जेडे की मौत ने इसे साबित किया है. जिन लोगों को पत्रकारिता के पेशे में आना है, उन्हें इस सबक़ को दोबारा याद करना चाहिए. वे पीआर जर्नलिज़्म करने वालों की सेना में शामिल हो जाएं या फिर सही पत्रकारिता करने वाले लोगों के पदचिन्हों पर चलें और अगर सही पत्रकारिता करने वालों के पदचिन्हों पर चलना है तो इ़ज़्ज़त मिलेगी, सम्मान मिलेगा, लोगों का प्यार मिलेगा. हो सकता है कहीं से कोई गोली भी मिल जाए. जेडे को हम सच्ची श्रद्धांजलि देते हैं और जेडे से यह वादा करते हैं कि हम उस क़तार में हमेशा बने रहेंगे, जो सच्ची पत्रकारिता की पक्षधर है.

- संतोष भारतीय

प्रमुख संपादक चौथी दुनिया (हिंदी का पहला साप्ताहिक अख़बार) भारतीय भारत के शीर्ष दस पत्रकारों में गिने जाते हैं.

शनिवार, 9 जुलाई 2011

जल्द ही 800 रुपये में मिलेगा सिलिंडर 100 रुपये लीटर पेट्रोल?


नई दिल्ली।नवभारत टाइम्स। गैस सिलिंडर जल्द ही 800 रुपये में मिलेगा। साल भर में सब्सिडी वाले केवल 4 सिलिंडर ही दिए जाएंगे। तेल मंत्रालय के मुताबिक बीपीएल परिवारों को भी 4 सिलिंडर दिए जाएंगे। मंत्रालय ने कहा कि बीपीएल परिवारों के लिए साल भर में 4 सिलिंडर पर्याप्त हैं।
सरकार बीपीएल परिवारों को कनेक्शन लेने के लिए एक बार 1400 रुपये की मदद देगी। मंत्रालय यह प्रस्ताव ईंधन पर बने मंत्री समूह के सामने रखेगा। इसका मकसद यह है कि सिर्फ जरूरतमंद लोगों को ही सब्सिडी का फायदा मिले और केरोसीन की कालाबाजारी पर लगाम लगे।
ऐसे लोग जिनके पास कार, टू-वीलर, घर है और जिनका नाम इनकम टैक्स लिस्ट में है, उन्हें सब्सिडी के दायरे से बाहर रखा जाएगा। बीपीएल कार्ड धारकों को यूआईडी आधार के जरिए सब्सिडी दी जाएगी।
मंत्रालय का मानना है कि बीपीएल परिवारों के लिए साल भर में 4 सिलेंडर काफी हैं। ऐसे अधिकतर परिवार ईंधन के तौर पर लकड़ी और उपलों का इस्तेमाल करते हैं। केरोसीन का भी लैंप जलाने आदि तक सीमित इस्तेमाल ही किया जाता है।

100 रुपये लीटर पेट्रोल?
महंगाई के दौर का सिलसिला थमने वाला नहीं है। ऐसे में आम आदमी को और झटके सहने के लिए तैयार रहना होगा। मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि पेट्रोलियम सेक्टर में जिन नीतियों को लेकर सरकार चल रही है, उसके चलते इस साल के अंत तक पेट्रोल 80 से 100 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस सिलिंडर बड़े शहरों में 600 रुपये तक पहुंच सकता है।
सूत्रों के अनुसार अगले माह तेल कंपनियां पेट्रोल की मूल्य समीक्षा करने जा रही हैं। पेट्रोल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जा चुका है। तेल कंपनियां ने हाल ही में पेट्रोल की कीमत में 5 रुपये की बढ़ोतरी की है। इसके बावजूद कंपनियों को अब भी पेट्रोल पर करीब 7 से 8 रुपये का घाटा हो रहा है।
एक तेल कंपनी के उच्चाधिकारी का कहना है कि सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने का मतलब है कि उस प्रॉडक्ट पर सरकार कोई घाटा नहीं सहेगी। कंपनियों को वह प्रॉडक्ट नो प्रॉफिट और नो लॉस पर बेचना होगा। ऐसे में कंपनियों क्यों घाटा उठाएगी? जब भी मूल्य समीक्षा बैठक होगी, स्थिति का आकलन करके उचित फैसला किया जाएगा।
मार्केट एक्सपर्ट के. के. मदान का कहा है कि मौजूदा समय में पेट्रोल की रिटेल कीमत का आधार 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल है। तेल का आयात 100 डॉलर से ज्यादा पर चल रहा है। तेल कंपनियों को अब भी पेट्रोल पर घाटा हो रहा है। जिस तरह से अमेरिका और यूरोपीय देशों की वित्तीय हालत है, उसे देखते हुए तेल का खेल चल रहा है। तेल सस्ता होने का मतलब है कि भारत जैसे एशियाई देशों की आयात मोर्चें पर मजबूती और अर्थव्यवस्था में सुधार। यूरोपीय देश इस बात को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यही कारण है कि तेल की कीमत कभी भी किसी भी स्तर पर पहुंच सकती है। ऐसे में रिटेल कीमतों का बढ़ते रहना तय है।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

केन्द्रीय विद्यालयों में सरस्वती वंदना पर रोक क्यों ?



ऐसा लगता है कि देश में सेकुलरवाद के नाम पर हिन्दू आस्थाओं पर कुठाराघात करने का चलन सा हो गया है यह भी कहा जा सकता है कि आज हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़ ही सेकुलरवाद की परिभाषा बन गई है इसलिए देश के तथाकथित सेकुलरवादी हिन्दू भावनाओं पर चोट करने का कोई न कोई मौका ढूंढ ही लेते हैं, ताकि खांटी सेकुलरवादी होने का तमगा उन्हें मिल सके इस बार सेकुलरवाद की भेंट अजमेर (राजस्थान) के दो केन्द्रीय विद्यालय चढ़े । इन विद्यालयों में होने वाली सरस्वती वंदना पर घृणित सेकुलरवादी सोच के चलते रोक लगा दी गई है । अजमेर के दो केंद्रीय विद्यालयों (केन्द्रीय विद्यालय-1 और 2) ने वार्षिकोत्सव और अन्य समारोहों में होने वाली सरस्वती वंदना पर रोक लगा दी है। इन विद्यालयों ने वेबसाइट से मां सरस्वती का चित्र भी हटा दिया है। भारत में सदियों से मां सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान की देवी और सद्बुद्धि की दाता के रूप में पूजा जाता है। किंतु सेकुलरवाद के नाम पर सरस्वती वंदना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश होती आई है। अजमेर की इस घटना पर सांप्रदायिक सौहाद्र्र का अलख जगाने वाले स्वयंभू बुद्घिजीवियों का मौन उनकी दोहरी मानसिकता का ही प्रमाण है। अजमेर में सक्रिय रेशनलिस्ट सोसायटी द्वारा लंबे समय से सरस्वती वंदना पर आपत्ति प्रकट किए जाने के कारण कथित तौर पर इन विद्यालयों को उक्त निर्णय लेना पड़ है। रेशनलिस्ट सोसायटी देश के सभी सरकारी-गैर सरकारी विद्यालयों में सरस्वती वंदना पर रोक लगाने का हिमायती है। सोसायटी का तर्क है कि सरस्वती वंदना से भारत के पंथनिरपेक्ष स्वरूप पर खतरा पैदा होता है। निरीश्वरवादियों के इस तर्क को मानें तो हमें अपने कई राष्ट्रीय प्रतीकों में भी बदलाव करने होंगे। क्या हम ’सत्यमेव जयते‘ की अपनी मान्यता को केवल इसलिए छाड़ दें कि यह मांडूक्य उपनिषद से ली गई है? या जीवन बीमा निगम के साथ युक्त सूक्ति -‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’ का परित्याग कर दिया जाए क्योंकि वह भागवत गीता से उद्घृत है? इसी तरह क्या राष्ट्रीय झंडे से धर्मचक्र को भी निकाल देना चाहिए क्योंकि यह पंथ पंथनिरपेक्षता के विरुद्घ है? भारतीय रिजर्व बैंक के सामने स्थित यक्ष और यक्षिणी की मूर्ति ध्वस्त कर देनी चाहिए क्योंकि वे भारतीय आर्षग्रंथों के मिथकीय पात्र हैं? कनाडा के संसद में लक्ष्मी की पूजा होती है और वे इस दिवस को ‘‘आध्यात्मिक अंधकार के अंत’’ के रूप में मनाते हैं। आयरलैंड के नई दिल्ली स्थित दूतावास में गणेश प्रतिमा की प्रत्येक दिन पूजा-अर्चना की जाती है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइबिल पर हाथ रखकर पद की शपथ लेते हैं और डॉलर पर यह छपा होता है- हमें परमपिता पर विश्वास है। मुस्लिम बहुल देश होने और ३० वर्षों तक कम्युनिस्टी तानाशाही से शासित होने के बावजूद इंडोनेशिया ने पूर्वी एशियाई संकट के बाद एक नई मुद्रा-रुपिया चलाई। भारतीय सौ रुपए के समतुल्य बीस हजार इंडोनेशियाई रुपिया में भगवान गणेश विराजमान हैं। क्या ऐसी मान्यताओं व परंपराओं के कारण इन देशों को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं माना जाए? भारतवर्ष के संविधान में पंथनिरपेक्षता की अवधारणा निरीश्वरवाद नहीं, बल्कि सभी मतों को समान अवसर और उनके क्रियाकलाप में राज्य की दखलंदाजी नहीं होने से संबद्घ है। पश्चिम में भी पंथनिरपेक्षता का आशय राज्य से चर्च का पृथकीकरण ही है। उसका एक कारण यह भी था कि ईसाई जगत में चर्च राज्य के साथ प्रतिद्वंद्विता करने वाली शक्ति का केन्द्र बन गया था। इसके विपरीत भारतवर्ष में उपासना पद्घति और राज्य शक्ति में ना तो कभी विरोध और न ही कभी साम्य रहा। दोनों के क्षेत्र अलग-अलग रहे। वहीं ज्यादातर मुस्लिम देशों में पंथनिरपेक्षता की अवधारणा कल्पना से परे है।
सरस्वती वंदना पर प्रतिबंध का समर्थन करने वाले सेकुलरिस्ट ‘वंदे मातरम्’ गीत को भी सांप्रदायिक मानते हैं। वंदे मातरम् राष्ट्रगीत है और संविधान में इसे राष्ट्रगान के बराबर सम्मान प्राप्त है। संविधान किसी भी नागरिक को राष्ट्रगीत गाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता, किंतु राष्ट्र की अस्मिता से जुड़े प्रतीकों के लिए हर नागरिक में सम्मान भाव हो, ऐसी अपेक्षा स्वाभाविक है। भारत की सनातनी संस्कृति ने ही यहां के बहुसंख्यकों को विश्व बंधुत्व का शाश्वत संदेश दिया। इस्लाम सहित कई अन्य मत भारत में पल्लवित व पुष्पित हुए तो उसका सारा श्रेय इसी सनातन संस्कृति को है। संविधान में प्रजातंत्र और पंथनिरपेक्ष व्यवस्था भी केवल इसलिए संभव हो पाई, क्योंकि भारत का अधिकांश जनमत सनातन परंपरा से है और बहुलवाद में विश्वास रखता है। इस कालजयी राष्ट्र की सांस्कृतिक ज$डों को खोखला करने वाले सेकुलरिस्ट वस्तुतरू भारत की बहुलतावादी संस्कृति के विरोधी हैं।
अजमेर की इस घटना से एक बात तो साफ है कि इस देश में सेकुलरवाद के नाम पर हिन्दुओं की भावनाओं को ही आहत किया जाता है किसी अन्य मत-पंथ (मुस्लिम, ईसाई आदि) की भावनाओं को आहत करने का साहस इन तथाकथित सेकुलरवादियों में नहीं है क्योंकि इन्हें पता है कि अगर इन्होंने किसी अन्य मत-पंथ के लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचाई तो वे इनकी ईंट से ईंट बजा देंगे । अब प्रश्न उठता है कि आखिर कब तक हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़ होता रहेगा ? इसका एक ही जवाब है कि जब तक हिन्दू समाज ऐसे कृत्यों का विरोध नहीं करेगा तब तक यह सिलसिला इसी तरह जारी रहेगा।

रविवार, 3 जुलाई 2011

दिग्विजय सिंह का भंडाफोड़ !!

दिग्विजय सिंह अपराधियों ,औरातान्कवादियों से हमदर्दी रखता है ,यह उसके सभी अखबारों ,और टी.वी. में दिए गए बयानों से साबित होता है .जो व्यक्ति ओसामा को \"ओसामा जी \" और बाबा रामदेव को \"ठग \"और अन्ना हजारे को \"धोखेबाज \"कहता हो आप उसकी मानसिकता के बारे में खुद अंदाजा कर सकते है .इस बात में कोई शक नहीं है कि जिस व्यक्ति के जैसे विचार होते हैं ,वह वैसी ही नीति अपनाता है .वैसे तो दिग्विजय हिन्दू संगठनों को आतंकवादी ,अपराधी कहता है ,तो उसका मुंह नहीं थकता है. लेकिन जब उसे मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री का पद मिला तो उसने चुन चुन कर कई ऐसे लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठा दिया था जो अपराधी थे ,या जिनकी अपराधिक प्रष्ठभूमि थी .वैसे गिग्विजय को कांग्रेस से कोई लेनादेना नहीं था .उसके पूर्वज अंग्रेजों के पिट्ठू थे .और गुना जिला में एक छोटी सी रियासत राघौगढ़ के जमींदार थे .वही ठसक दिग्विजय में भरी हुई थी .दिग्विजय को कांग्रेस में लाने वाले उसके समधी अर्जुन सिंह थे .उस समय लोग एम् .पी कांग्रेस को \"समधी कांग्रेस \"कहते थे .सता पते ही दिग्विजय ने ईमानदार और निष्ठावान कायकर्ताओं को निकाल दिया और सन 1988 में पार्टी के \"पुनर्गठन \"के बहाने अपने लोगों को पार्टी में भर दिया जो अपराधी थे .उसी दिन से मध्य प्रदेश कांग्रेस का अपराधीकरण शुरू हो गया था .जो उस समय के अखबारों में छपा था .उनका कुछ नमूना दे रहे हैं - पार्टी में अपने ही लोगों को भर दिया ,और पुराने निष्ठावान कांगरेसियों कि उपेक्षा करके उनको निकाल दिया. 1 -इंदिरा गांधी को समर्पित ,दुर्दिनों के साथियों को गड्ढे में धकेला गया. कांग्रेस प्राइवेट लिमिटेड बन गई (दैनिक भास्कर .14 जन 1988 ) 2 -बुरे दिनों के साथी पुनर्गठन के नाम पर निकले गए.(दैनिक भास्कर .16 जन 1988 ) 3 -प्रदेश कार्यकारिणी की उपेक्षा .(भास्कर 18 जन .1988 ) बाद में जब 15 सितम्बर 1988 को पचमढ़ी में कांग्रेस की कार्यकारिणी की सभा हुई तो उसमे यह मुद्दा यथा था .और प्रताव पारित हुआ और सोनिया ने कहा था की कि 1978 से 1980 तक जिन लोगों ने काग्रेस के आंदोलनों में सक्रीय कम किया था ,उन्हीं को कंरेस में रखा जायेगा .लेकिन दिग्विजय से उस प्रस्ताव की अनदेखी करते हुए जिन लोगों को ऊंचे ऊँचे पदों पर बिठा दिया उनमेसे कुछ लोगों के नाम दिए जा रहे है .और दिग्विजय की नीतियों के बारे में कुछ जानकारी दी जा रही है .कांग्रेस कार्यालय की फाइलों से प्राप्त हुई है . 1 -दिनांक 27 -28 मार्च 1986 को दिग्विजय ने हेक जिलों से युवकों को बुलालर एक दल बनाया .जिसमे करीब 700 लोग चुने गए .और दल में शामिल होने की अंतिम तारीख 31 मार्च 1986 रखी थी .फिर उनके 22 सेल बना कर जंगल में ट्रेनिंग के लिए भेजा .इनमे अधिकांश लोग ऐसे थे ,जो खुले आम इंदिरा और राजीव को गालियाँ देते थे .इनका काम फसाद कराना था. 2 -जगतपाल को कांग्रेस कमिटी का जनेअल सेक्रेटरी मनोनीत किया ,जिसने 10 लाख रूपों का गबन किया. 3 -भोपाल गैस कांड के अपराधी .यूनियन कार्बाइड के अपराधियों और उनके साथियों को संरक्षण दिया . 4 -जब सन 1985 में मंदसौर के एक कसबे \"सिंगौरी \"में साम्प्रदायिक डंडे हुए ,तो दिग्विजय ने एक प्रेस नोट से दंगा और भड़का दिया .जिस से कई लोग मारे गए. 5 -ठाकुर हरबंस सिंह नामके व्यक्ति को कांग्रेस सेवादल का चेयर मेन बना दिया ,जिस पर धोखा घडी ,गबन और अन्य कई मामले चल रहे थे . अ -केस .न. 1650 /84 धारा 378 (c ) C R P C ब-केस स .298 /82 धारा 420 इसके आलावा हरबंस के निवास स्थान सेवनी पर इनकम टेक्स ने छापा मारा था और लाखों रूपया बरामद किया था . 6 -कप्तान सिंह ठाकुर .दिग्विजय ने इसे बीस सूत्री प्रोग्राम का जनरल सेक्रेटरी और Coordinator बना दिया था ,यह मैनपुरी से एक लड़की भगा कर लाया था .और उसे घर में रख लिया .फिर Willingdon हॉस्पिटल की एक नर्स को भगा लाया ,जो दिल्ली के कनाट प्लेस में रहती थी .यही नहीं इसने पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के फर्जी हस्ताक्षर बनाकर रेलवे में नौकरी ले ली थी .बाद में सच्चाई सामने आने से नौकरी से निकाल दिया था .उसके इन्हीं गुणों के कारण दिग्विजय ने उसे महत्वपूर्ण पद दिया था .और उसे पसंद करता था . 7 -सदरुद्दीन अंसारी .दिग्विजय ने इसे Vice President बना दिया था .यह कांग्रेस में होकर भी \"जमाअतुल उलमा \"का भी उपाध्यक्ष था. उसका लड़का निजामुद्दीन अंसारी कुख्यात अपराधी था .और भोपाल में उसपर कई मुकदमे दर्ज हैं .सन 1985 में इसी ने अपने लोगों के साथ मंदसौर में दंगे करवाए थे. यह तो थोड़े से नमूने हैं जो विस्तार भय से लिखे हैं .उपलब्ध फाइलों में ऐसे बहुत प्रमाण हैं ,जिससे दिग्विजय के अपराधियों के साठगाँठ होने के सबूतहै . आज भले दिग्विजय राहुल को प्रधान मंत्री बनाने की बातें करके , सोनिया की चापलूसी कर रहा है और खुद को इंदिरा और सोनिया का भक्त बता रहा है .लेकिन दिग्विजय के ईमान का कोई भरोसा नहीं है .इसके सबूत के लिए रायपुर से प्रकाशित अखबार की हेडिंग का हवाला दिया जा रहा है . \"प्रदेश के वरिष्ठ नेता ,रोकते रहे ,और कहा कि इंदिरा और राजीव को गालियाँ देने वालों को जिम्मेदारी देना मेरी भूल है .इंदिरा\" को अंतर्राष्ट्रीय वेश्या \",और सोनिया को \"फ़ोरेन माल \"कहने वाले प्रदेश कार्यकारिणी के पदाधिकारी \"देशबंधु रायपुर .30 अगस्त 1992 ). (नोट -दिग्विजय के भक्त कांग्रेसी विचार करें !!) दिग्विजय सिंह सम्बन्धी इन तीनों लेखों को पढ़ने वाले सभी पाठको से अनुरोध है कि ,यह जानकारी मुझे कांग्रेस के एक निष्ठावान और वरिष्ठ पदाधिकारी ने दी है .जिसमे कुछ अखबारों से कुछ कांग्रेस दफ्तर की फाइलों से ली गयी है .आज भी यह व्यक्ति कांग्रेस के प्रति समर्पित हैं .लेकिन उन्हों ने दिग्विजय कि जनविरोधी नीतियों का विरोध किया था ,और दिग्विजय को सचेत किया था .उनकी बात न मानने के कारण मध्य प्रदेश से कांग्रेस का सफाया हो गया था.इनके पास इतने सबूत हैं जिस से सोनिया भी फस सकती है ,दिग्विजय क्या चीज है .मैंने वह फायलें खुद देखी है .उनका परिचय इस प्रकार है - R.M.Bhatanagar Ex.Chairman (Minister staus),ExOffice Secratary,(1978-1993) Secretary cum Personnel Officer, 34.Good Shefard Colony,Banjari Chauraha Kolar Road-BHOPAL.M.P. चूँकि उनपर दो बार हमला हो चूका है वह अपना मोबाईल नंबर नहीं दे रहे हैं .इन लेखों के बाद उन्होंने अपनी तरफ से यह भी लिखने को कहा है जो उन्होंने अखबारों को पहले भी लिख दिया था.\"सत्यापन -मैं शपथ पूर्वक सत्यापत करता हूँ कि उल्लेखित जानकारी मेरे निजी ज्ञान तथा उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर सत्य है \" अब जिसे चाहिए उन से संपर्क करे .या मेरे मेल से सूचित करे .Em-satyawadi44@gmail.com साभारःhttp://bhandafodu.blogspot.com/2011/06/blog-post_30.html

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011