बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

अब भारत नहीं कहलाएगा किसानों का देश

कृषि प्रधान भारत देश में लगता है यहाँ खेती तो की जाएगी, लेकिन किसानों के द्वारा नहीं, खेती करने वाले विशालकाय कॉर्पोरेट्स होंगे। आज के अन्नदाता किसानों की हैसियत उन बंधुआ मजदूरों या गुलामों की होगी, जो अपनी भूख के लिये कॉर्पोरेट्स के आदेश पर अपनी ही जमीनों पर चाकरी करेंगे।
इस समय देश में खेती और किसानों के लिये जो नीतियाँ और योजनाएँ लागू की जा रही हैं उसके पीछे यही सोच दिखाई देती है। कॉर्पोरेट हितों ने पहले तो षड्यंत्रपूर्वक देश की ग्रामीण उद्योग व्यवस्था तोड़ दी और गाँवों के सारे उद्योग धन्धे बन्द कर दिये। स्थानीय उत्पादकों को ग्राहकों के विरुद्ध खड़ा किया गया। विज्ञापनों के जरिए स्थानीय उद्योगों में बनी वस्तुओं को घटिया व महंगा और कम्पनी उत्पादन को सस्ता व गुणवत्तापूर्ण बताकर प्रचारित किया गया और यहाँ की दुकानों को कम्पनी के उत्पादनों से भर दिया गया।
 इस गोरखधंधे में स्थानीय व्यापारियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने व्यापार और देशी उद्योगों के पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारकर उसे कॉर्पोरेट के हवाले कर दिया। अब उद्योग, व्यापार और खेती पर कॉर्पोरेट्स एक-के-बाद-एक कब्जा करते जा रहे हैं।

प्राकृतिक संसाधन, उद्योग और व्यापार पर तो उन्होंने पहले ही कब्जा कर लिया था। अब वे खेती पर कब्जा जमाना चाहते हैं ताकि कॉर्पोरेट उद्योगों के लिये कच्चा माल और दुनिया में व्यापार के लिये जरूरी उत्पादन कर सकें। कॉर्पोरेट खेती के हित में छोटे किसानों के पास पूँजी की कमी, छोटी जोतों में खेती का अ-लाभप्रद होना, यांत्रिक और तकनीकी खेती कर पाने में अक्षमता आदि के तर्क गढ़े गए। कहा गया कि पारिवारिक खेती करने वाले किसान उत्पादन बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं। इस तर्क की आड़ में ककॉर्पोरेट्स ने प्रत्यक्ष स्वामित्व या पट्टा या लम्बी लीज पर जमीन लेकर खेती करने या किसान समूह से अनुबन्ध करके किसानों को बीज, कर्ज, उर्वरक, मशीनरी और तकनीक आदि उपलब्ध कराकर खेती करने का जुगाड़ कर लिया। खेती की जमीन, कृषि उत्पादन, कृषि उत्पादों की खरीद, भण्डारण, प्रसंस्करण, विपणन, आयात-निर्यात आदि सभी पर कॉर्पोरेट्स अपना नियंत्रण करना चाहते हैं। दुनिया के विशिष्ट वर्ग की भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिये जैव ईंधन, फलों, फूलों या खाद्यान्न की खेती भी वैश्विक बाजार को ध्यान में रखकर करना चाहते हैं। वे फसलें, जिनसे उन्हें अधिकतम लाभ मिलेगा, पैदा की जाएँगी और अपनी शर्तोंं व कीमतों पर बेची जाएँगी।

अनुबन्ध खेती और कॉर्पोरेट खेती के अनुरूप नीतिगत सुधार के लिये उत्पादन प्रणालियों को पुनर्गठित करने और सुविधाएँ देने के लिये नीतियाँ और कानून बनाए जा रहे हैं। दूसरी हरित क्रान्ति के द्वारा कृषि में आधुनिक तकनीक, पूँजी-निवेश, कृषि यंत्रीकरण, जैव तकनीक और जीएम फसलों, ई-नाम आदि के माध्यम से अनुबन्ध खेती, कॉर्पोरेट खेती के लिये सरकार एक व्यवस्था बना रही है।

डब्ल्यूटीओ का समझौता, कॉर्पोरेट खेती के प्रायोगिक प्रकल्प, अनुबन्ध खेती कानून, कृषि और फसल बीमा योजना में विदेशी निवेश, किसानों के संरक्षक सीलिंग कानून को हटाने का प्रयास, आधुनिक खेती के लिये इजराइल से समझौता, खेती का यांत्रिकीकरण, जैव तकनीक व जीएम फसलों को प्रवेश, कृषि मंडियों का वैश्विक विस्तारीकरण, कर्ज राशि में बढ़ोत्तरी, कर्ज ना चुका पाने में अक्षमता पर खेती की गैरकानूनी जब्ती, कृषि उत्पादों की बिक्री की शृंखला, सुपरबाजार, जैविक ईंधन, जेट्रोफा, इथेनॉल के लिये गन्ना और फलों, फूलों की खेती आदि को बढ़ावा देने की सिफारिशें, निर्यातोन्मुखी कॉर्पोरेट खेती और विश्व व्यापार संगठन के कृषि समझौते के तहत वैश्विक बाजार में खाद्यान्न की आपूर्ति की बाध्यता आदि सभी को एकसाथ जोड़कर देखने से कॉर्पोरेट खेती की तस्वीर स्पष्ट होती है।

खेती को उद्योग में तब्दील करने की बातें कई सालों से होती रही हैं, लेकिन अब कॉर्पोरेट हितों के चलते इसे अमलीजामा पहनाने की तैयारियाँ जोर-शोर से दिखाई देने लगी हैं। राज्यों और केन्द्र की सरकारों समेत ‘विश्व व्यापार संगठन’ सरीखे देशी-विदेशी संस्थान अव्वल तो किसानी को किसानों के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं और दूसरे सीमित होती कृषि भूमि में बाजारों के लिये भरपूर उत्पादन के मार्फत मुनाफा कूटना चाहती हैं। ऐसे में किसानी अब किसानों की बजाय कॉर्पोरेट का धंधा बनती जा रही है।
इस समय देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ रॉथशिल्ड, रिलायंस, पेप्सी, कारगिल, ग्लोबल ग्रीन, रॅलीज, आयटीसी, गोदरेज, मेरी को आदि के द्वारा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तामिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में आम, काजू, चीकू, सेब, लीची, आलू, टमाटर, मशरुम, मक्का आदि की खेती की जा रही है। उच्च शिक्षित युवा जो आधुनिक खेती करने, छोटी दुकानों में सब्जी बेचने, प्रसंस्करण करने आदि के काम कर रहे हैं, उनमें से अधिकांश कॉर्पोरेटी व्यवस्था स्थापित करने के प्रायोगिक प्रकल्पों पर काम कर रहे हैं।

भारत में किसी भी व्यक्ति या कम्पनी को एक सीमा से अधिक खेती खरीदने, रखने के लिये सीलिंग कानून प्रतिबन्धित करता है। इसके चलते कॉर्पोरेट घरानों को खेती पर सीधा कब्जा करना सम्भव नहीं है। इसलिये सीलिंग कानून बदलने के प्रयास किये जा रहे हैं। कुछ राज्यों में अनुसन्धान और विकास, निर्यातोन्मुखी खेती के लिये कृषि व्यवसाय फर्मों को खेती खरीदने की अनुमति दी गई है, कहीं पर कम्पनियों के निदेशकों या कर्मचारियों के नाम पर खेती खरीदी की गई है, तो कहीं राज्य सरकारों ने नाम मात्र राशि लेकर पट्टे पर जमीन दी है।

बंजर भूमि खरीदने या किराये पर लेने की अनुमति दी जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार आज देश में लगभग 40 प्रतिशत किसान अपनी खेती बेचने के लिये तैयार बैठे है। केन्द्रीय वित्त मंत्री ने संसद में कहा था कि सरकार किसानों की संख्या 20 प्रतिशत तक ही सीमित करना चाहती है। अर्थात् यह 20 प्रतिशत किसान वही होंगे, जो देश के गरीब किसानों से खेती खरीद सकेंगे और जो पूँजी, आधुनिक तकनीक और यांत्रिक खेती का इस्तेमाल करने में सक्षम होंगे। यह सम्भावना उन किसानों के लिये नहीं है जो खेती में लुटने के कारण परिवार का पेट नहीं भर पा रहा है। इसका अर्थ यह है कि आज के शत-प्रतिशत किसानों की खेती पूँजीपतियों के पास हस्तान्तरित होगी और वे किसान कॉर्पोरेट होंगे।

किसानों की संख्या 20 प्रतिशत करने के लिये ऐसी परिस्थितियाँ पैदा की जा रही हैं कि किसान स्वेच्छा से या मजबूर होकर खेती छोड़ दे या फिर ऐसे तरीके अपनाए जिसके द्वारा किसानों को झाँसा देकर फँसाया जा सके। किसान को मेहनत का मूल्य न देकर सरकार खेती को घाटे का सौदा इसीलिये बनाए रखना चाहती है ताकि कर्ज का बोझ बढ़ाकर उसे खेती छोडऩे के लिये मजबूर किया जा सके। जो किसान खेती नहीं छोड़ेंगे उनके लिये अनुबन्ध खेती के द्वारा कॉर्पोरेट खेती के लिये रास्ता बनाया जा रहा है। देश में बाँधों, उद्योगों और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिये पहले ही करोड़ों हेक्टर जमीन किसानों के हाथ से निकल चुकी है। अब बची हुई जमीन धीरे-धीरे उन कॉर्पोरेट्स के पास चली जाएगी जो दुनिया में खेती पर कब्जा करने के अभियान पर निकले हैं। लूट की व्यवस्था को कानूनी जामा पहनाकर उसे स्थायी और अधिकृत बनाना कॉर्पोरेट की नीति रही है। भारत में जब अंग्रेजी राज स्थापित हुआ था तब जमींदारी कानून के द्वारा लूट की व्यवस्था बनाई गई थी। लगान लगाकर किसानों को लूटा गया था। अनुबन्ध खेती, कारपोरेट खेती जमींदारी का नया प्रारूप है। अब केवल लगान नहीं, खेती के हर स्तर पर लूट की व्यवस्था बनाकर खेती ही लूटी जा रही है। देश खाद्यान्न सुरक्षा, आत्मनिर्भरता को हमेशा के लिये खो रहा है। यह परावलम्बन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी बड़ा खतरा है। भारत फिर से गुलामी की जंजीरों में बँधता जा रहा है विवेकानंद माथने   

शनिवार, 22 सितंबर 2018

नहीं चलेगी चुनाव डयूटि से बचने की बहाने बाजी

- फर्जी और झूठे प्रार्थना पत्रों की होगी जांच
- गलत पाये जाने पर जायेगी नौकरी सीहोर। विधानसभा निर्वाचन 2018 हेतु निर्वाचन कार्यालय द्वारा सभी विभागों से कर्मचारियों की जानकारी मांगी जाकर कर्मचारियों को मतदान दल सहित अन्‍य चुनावी कार्यो में लगाया जा रहा हैा प्राय- देखा जाता है कि जैसे ही चुनाव आते हैं कई चालाक कर्मचारी कई कई प्रकार के बहाने बनाकर फर्जी दस्‍तावेजों के आधार पर प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत कर चुनाव कार्य से मुक्‍त होना चाहते है या प्रयास करते हैा इस संबंध में अपर कलेक्‍टर सीहोर श्री व्‍ही के चतुर्वेदी एवं श्री मेहताब सिंह उप जिना निर्वाचन अधिकारी सीहोर ने प्रेस्‍ विज्ञप्‍ति जारी कर चेतावनी देते हुये कहा है कि यदि किसी कर्मचारी द्वारा चुनाव की डयूटि से बचने का बहाना या फर्जी दस्‍तावेजों का सहारा लेकर चुनाव से मुक्‍त किये जाने का प्रयास अथवा छदम प्रयास किया गया तो ऐसे कर्मचारी को उसकी नौकरी से हाथ धोना पड सकता हैा ध्‍यान रहे कि जैसे ही कर्मचारी की डयूटि चुनाव कार्य से लगाई जाती है तो बडी संख्‍या में कुछ कर्मचारी चुनाव से बचने का झूठा प्रयास करते है और अनावश्‍यक रूप से चुनाव कार्य से मुक्‍त हेतु आवेदन कार्यालय में प्रस्‍तुत करते है जिससे निर्वाचन कार्यालय को उनके आवेदन की जांच में काफी समय लग जाता है एवं निर्वाचन कार्य बाधित होता है इस स्थिति को द़ष्टिगत रखते हुये उप जिला निर्वाचन अधिकारी ने कहा है कि विभिन्‍न कारणों से चुनाव कार्य से मुक्ति हेतु प्राप्‍त आवेदनों का पूर्ण गंभीरता से जांच में लिया जायेगा और प्राप्‍त आवेदन की जांच की जायेगी गंभीर श्रेणी के बीमार एवं दिव्‍यागं कर्मचारियों महिला पुरूष कर्मचारियों का मेडिकल बोर्ड से परीक्षण प्रत्‍यक्ष में कराया जायेगा यदि गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा अथवा जिला निर्वाचन पदाधिकारी की टीम द्वारा जांच उपरांत आवेदन कार्यवाही योग्‍य नहीं पाया गया तो ऐसे कर्मचारी के विरूद निर्वाचन लोक प्रतिनिधित्‍व एवं पराक्रम अधिनियम के प्रावधानों के अन्‍तर्गत कडी दण्‍डात्‍मक कार्यवाही की जावेगी-- यदि किसी कर्मचारी का चुनाव कार्य से मुक्‍ती का आवेदन असत्‍य अथ्‍वा झूठा पाया गया तो उसकी नौकरी भी जा सकती हैा

सोमवार से फिर बढ़ जाएंगे वाहनों के बीमा की राशि

सीहोर। मोदी सरकार द्वारा देश की जनता के लिए शुरू किए गए अच्छे दिनों में जहां पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। वहीं अब वाहनों के बीमा की राशि में भी एक हजार रूपए तक की बढ़ौतरी की जा रही है जबकि कुछ दिन पहले ही एक साल की बीमा अवधि को बढ़ाकर तीन और पंाच साल कर दिया गया था इसके बाद अब बीमा राशि में बढ़ोतरी की जा रही है। जानकारी के अनुसार बीमा कंपनियों द्वारा वाहनों के बीमा के साथ वाहन चालक और वाहन मालिक का भी दुर्घटना बीमा किया जाता है। पूर्व में इसके लिए 50 रूपए की प्रीमियम ली जाती थी और एक लाख रूपए का बीमा कवर किया जाता था। अब इसे बढ़ाकर 750 रूपए कर दिया गया है और 15 लाख रूपए का बीमा कवर कर दिया गया है। यह दो पहिया, चार पहिया और अन्य सभी वाहनों पर फस्र्ट पार्टी और थर्ड पार्टी बीमा पर लागू किया गया है। इसके अलावा जीएसटी अलग से वसूला जाएगा। इस वृद्धि के बाद वाहन मालिकों की जेब पर एक हजार रूपए की चपत लगेगी। इसी प्रकार नए वाहन खरीदने पर आपको पांच साल की बीमा की राशि एक मुश्त ही भुगतान करना पड़ेगा। इसी प्रकार चार पहिया वाहनों का बीमा कराना आवश्यक है। इस तरह वाहन खरीदने वालोें की जेब पर भार पड़ रहा है। दूसरी ओर लगातार डीजल और पेट्रोल के दाम भी बढ़ रहे हैं।

इनका कहना है

वाहनों के बीमा के साथ ही चालक और वाहन मालिक की बीमा प्रीमियम 750 रूपए किया गया है और बीमा कवर 15 लाख कर दिया गया है। यह बढ़ोत्तरी सोमवार से लागू होगी। - सुरेश कुमार आहूजा प्रबंधक ओरिएंटल इंश्योरेन्स कंपनी लिमिटेड

पुलिस कानून के मुताबिक़ काम करेगी या मुख्यमंत्री के मौखिक आदेश पर..?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST एक्ट को लेकर दिए फैसले को संसद ने बदल दिया है। यानि इस एक्ट में दर्ज प्रकरणों में बिना विवेचना ही गिरफ़्तारी होगी। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि इस एक्ट में बिना विवेचना गिरफ़्तारी नहीं होगी। अब सवाल यह उठता है कि पुलिस कानून के मुताबिक़ काम करेगी या मुख्यमंत्री के मौखिक आदेश पर..?

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

विधानसभा में कांग्रेस विधायक शैलेन्द्र पटेल ने दिखाया शिवराज सरकार को आईना

किसानों की कब्रगाह बना मध्य प्रदेश- विधायक शैलेन्द्र पटेल
सीहोर। मध्य प्रदेश किसानों की कब्रगाह बन गया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में हजारों की संख्या में किसान कर्ज और अन्य वजह से आत्महत्या करने को विवश है। प्रदेश में सबसे अधिक आत्महत्या खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले में हुई है।
उक्त आवाज इछावर के विधायक शैलेन्द्र पटेल ने प्रदेश के राज्यपाल के अभिभाषण की चर्चा के दौरान विधानसभा में कांग्रेस की ओर से उठाते हुए प्रदेश में किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों, व्यापारियों की समस्याओं प्रदेश सरकार को आईना दिखाया। कांग्रेस विधायक शैलेन्द्र पटेल का कहना है कि शिवराज सरकार किसानों की आत्महत्या को दूसरा रूप देने में लगी है। इन आत्महत्याओं का कारण पारिवारिक विवाद, नशाखोरी, जमीन विवाद बताया जा रहा है। इतना ही नहीं मंदसौर के किसान आंदोलन के पीछे अफीम तस्करों का हाथ बताकर सरकार ने किसानों का अपमान किया है।
15 हजार से अधिक किसानों ने की आत्महत्या- विधायक श्री पटेल का कहना कि शिवराज सिंह भले ही किसानों को लेकर कितने ही बड़े-बड़े दावें करें, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि जब से वह मुख्यमंत्री बने हैं प्रदेश में 3 से 4 किसान प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं। 2004 से लेकर 2016 तक प्रदेश में 15 हजार से भी ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की हैं। यह आंकड़ा खुद उन्हीं की सरकार ने दिया है।
प्रदेश में कर्मचारी वर्ग असंतोष- इन दिनों प्रदेश में कर्मचारी वर्ग भाजपा सरकार की नीतियों के कारण आंदोलन कर रहा है। प्रदेश में कर्मचारियों द्वारा अपनी मांगों को लेकर आंदोलित है, लेकिन सरकार कर्मचारियों के हितों को नजर अंदाज कर रही है। विधानसभा की कार्रवाई के दौरान विधायक श्री पटेल ने कहा कि प्रदेश में हर यात्रा की ब्रांडिंग की जा रही है। कुछ दिनों पहले नर्मदा सेवा ब्रांडिंग यात्रा कराई इसमें जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा इस यात्रा की ब्रांडिंग में खर्च कर दिया। प्रदेश में सिर्फ भ्रष्टाचार और अनाचार के अलावा कुछ भी नहीं है। पशुपालको को दूध का भाव नही मिल रहा है गोवंश आज रोड के ऊपर है किसानो को रात-रात भर जागकर आपनी फसलो को उनसे बचाना पड़ रहा है

गुरुवार, 8 मार्च 2018

भार्गव के हाथों में अपेक्स बैंक की कमान

भार्गव के हाथों में अपेक्स बैंक की कमान
सीहोर। जिले के वरिष्ठ सहकारी नेता और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान के परम सखा श्री रमाकान्त भार्गव को सरकार ने अपेक्स बैंक का प्रशासक नियुक्त किया है। श्री भार्गव की नियुक्ति अप्रत्याशित नहीं है। क्योंकि अपेक्स बैंक और प्रदेश भर में जिला सहकारी केन्द्रीय बैेंकों की माली हालत ठीक नहीं है। पिछले कुछ सालों से अपेक्स बैंक के प्रशासक का कार्यभार मुख्यमंत्री ने प्रशानिक अधिकारी के हाथों में सौंप रखी थी। श्री भार्गव के हाथोेें में बैंक की कमान आने से जहां श्री भार्गव का ओहदा ब-सजय़ा है वहीं उनके मार्ग दर्शन में सहकारिता आंदोलन और भी गतिमान होगा। श्री भार्गव पिछले कई दशकोें से जिले सहित प्रदेश में सहकारिता आंदोलन के प्रमुख नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। सदा जीवन और मिलनसार व्यवहार के कारण वे प्रदेश में अपनी अलग पहचान रखते हैं।

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

कवि कुमार विश्वास एक बार फिर सुर्खियों में


 आए दिन किसी न किसी वजह से चर्चा में रहने वाले कवि कुमार विश्वास एक बार फिर सुर्खियों में है। इसकी वजह इस बार कोई विवाद नहीं है बल्कि उनकी बाइक चलाती एक फोटो है। 
फोटो में कुमार विश्वास गाड़ी चलाते नजर आ रहे हैं। बाइक के पीछे उनकी वाइफ मंजू शर्मा भी बैठी हुई हैं। उनकी ये फोटो वैलेंटाइन डे के दिन सामने आई है। दरअसल, कुमार विश्वास ने 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे पत्नी संग बाइक पर राइडिंग कर सेलिब्रेट किया।
 बता दें, कुमार की वाइफ कॉलेज में प्रोफेसर हैं वहीं दोनों की लव मैरिज हुई थी। उनकी इस फोटो को हिमांशी सिंह के नाम की महिला ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की है। हिमांशी ने कुमार विश्वास की बाइक राइडिंग की फोटों पर हैलमेट पहनने को लेकर ट्विटर अपत्ति दर्ज की। इसके बाद कुमार ने ट्विट करते हुए लिखा कि,"क्षमा बालिके, घर के सामने की गली में अपने पार्क के चारों और टहला था। बस हमका माफी दै दो।"

सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

*लोगों का आंकलन नहीं मदद करो*

महाभारत के युद्ध में अर्जुन और कर्ण के बीच घमासान चल रहा था। अर्जुन का तीर लगने पे कर्ण का रथ 25-30 हाथ पीछे खिसक जाता , और कर्ण के तीर से अर्जुन का रथ सिर्फ 2-3 हाथ। लेकिन श्री कृष्ण थे की कर्ण के वार की तारीफ़ किये जाते, अर्जुन की तारीफ़ में कुछ ना कहते। अर्जुन बड़ा व्यथित हुआ, पूछा, हे पार्थ आप मेरी शक्तिशाली प्रहारों की बजाय उसके कमजोर प्रहारों की तारीफ़ कर रहे हैं, ऐसा क्या कौशल है उसमे। श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले, तुम्हारे रथ की रक्षा के लिए ध्वज पे हनुमान जी, पहियों पे शेषनाग और सारथि रूप में खुद नारायण हैं । उसके बावजूद उसके प्रहार से अगर ये रथ एक हाथ भी खिसकता है तो उसके पराक्रम की तारीफ़ तो बनती है । कहते हैं युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन को पहले उतरने को कहा और बाद में स्वयं उतरे। जैसे ही श्री कृष्ण रथ से उतरे , रथ स्वतः ही भस्म हो गया । वो तो कर्ण के प्रहार से कबका भस्म हो चूका था, पर नारायण बिराजे थे इसलिए चलता रहा । ये देख अर्जुन का सारा घमंड चूर चूर हो गया । कभी जीवन में सफलता मिले तो घमंड मत करना, कर्म तुम्हारे हैं पर आशीष ऊपर वाले का है। और किसी को परिस्थितिवष कमजोर मत आंकना,हो सकता है उसके बुरे समय में भी वो जो कर रहा हो वो आपकी क्षमता के भी बाहर हो। - संकलित